منصور صوفی تھے اور انہوں نے انا الحق کا نعرہ لگایا
منصور صوفی تھے اور انہوں نے انا الحق کا نعرہ لگایا جو وقت کے مولوی تھے چھوٹے دماغ
Mansoor Hussain Hulaj Said I am Truth |
والے تھے ان کو ان کی یہ بات اچھی نہیں لگی اور انہوں نے کہا کہ منصور کافر ہے اسے سولی چڑھا دو جب منصور سے کہا گیا کیا شریعت کے خلاف جا رہے ہو اپنے مذہب کے خلاف جا رہے ہو تو اس نے کہا یہ میرے دل کا مذھب ہے میرے دل میں جو یار بولتا ہے وہ میں بولتا ہوں.
پیچھے ہٹ جاؤ
Muslim Fundamentals killed Sufi Mansoor
مولویوں نے بہت ہی سمجھایا کہ اپنی بات سے مکر جاؤ اپنی بات سے پیچھے ہٹ جاؤ مگر منصور نے کہا کہ میں پیچھے نہیں هٹونگا اور وہ اپنی بات کرتا رہا.Muslim Fundamentals killed Sufi Mansoor
منصور کو ہم سولی چڑھا دیں گے
پھر سارے پنڈٹوں نے مل کر یہ فیصلہ لیا کہ منصور کو ہم سولی چڑھا دیں گے اسے پھانسی دے دیں گے تو منصور نے مسکرا کر کہا مجھے قبول ہے.
Stoning to Mansoor for crime of Speaking Truth about GOD |
عشق کیا ہے
جب وہ منصور کو مقتل لے کر جا رہے تھے تو راستے میں اسے ایک عورت ملی. اور منصور سے پوچھتی ہے, کہ عشق کیا ہے. تو منصور نے اس سے کہا کے
پہلا جب عاشق کو گلی میں گھما کے رسوا کیا جائے گا. دوسرے دن جب اسے خون سے نہلایا جائے گا. اور تیسرے دن اس سولی پر چڑھا دیا جائے گا. اور ایسا ھی ہوا۔
Sufi Gathring about love and peace |
خدا ان کو اپنی رگ و جان سے بھی قریب ہوتا ہے
صوفی لوگوں کی یہی کہانی ہے. لوگ انہیں سمجھ نہیں پاتے کیونکہ صوفی تو اپنے دل کی بات کرتے ہیں. وہ اپنے دل میں خدا کو دیکھتے ہیں, خدا ان کو اپنی رگ و جان سے بھی قریب ہوتا ہے, اور وہ سارا دن خدا کے دیدار میں مصروف رہتے ہیں. لیکن مذھب والے کیا کرتے ہیں, ان کے تو ٹائم رکھے ہوتے ہیں پوجاپاٹھ کے لئے، لیکن صوفی تو ہر ٹائم دیدار کرتا رہتا ہے. وہ دیدار میں اور دیدار ان میں ھوتا ھے۔
سچل سرمست نے کہا
اسی بات کو مدنظر رکھتے ہوئے, ہفت زبان شاعر حضرت سچل سرمست نے کہا تھا, میں دیدار وچ دیدار میں وچ.
بابا بلھا شاھ نے کہا
پنڈت کو اپنی پگڑی سے محبت ہوتی ہے لیکن صوفی تو خدا سے محبت کرتے ہیں دونوں کا یہی فرق ہے پنڈت پیٹ کو دیکھتا ہے عبادت کو نہیں لیکن صوفی اپنے ہی دل میں اپنے روح کو دیکھتا ہے اور اس کا روح کو دیکھنا ہی ایک عبادت ہوتی ہے بابا بلھا شاھ نے کہا تھا کہ بس اک الف ہی درکار علموں بس کریں وے یار۔
Hindi Translation
मंसूर सूफी थे और उन्होंने अन्ना हक का नारा लगाया जो समय के मौलवी थे छोटे दिमाग वाले थे उन्हें उनकी यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने कहा कि मंसूर काफ़िर है उसे सूली चढ़ा दो जब मंसूर कहा गया क्या व्यवस्था के खिलाफ जा रहे हो अपने धर्म के खिलाफ जा रहे हो तो उसने कहा यह मेरे दिल का धर्म है मेरे दिल में जो यार बोलता है वह मैं बोलता हूँ
मौलवियों ने बहुत समझाया कि अपनी बात से मुकर जाओ अपनी बात से पीछे हट जाओ मगर मंसूर ने कहा कि मैं पीछे नहीं हटोंगा और वह अपनी बात करता रहा
फिर सारे पंडों ने मिलकर यह निर्णय लिया कि मंसूर हम सूली चढ़ा देंगे उसे फांसी दे देंगे तो मंसूर ने मुस्कुरा कर कहा, मुझे स्वीकार है।
जब वह मंसूर को मक़्तल लेकर जा रहे थे तो रास्ते में उसे एक औरत मिली। और मंसूर से पूछती है कि प्रेम क्या है। तो मंसूर ने कहा के। इश्क तीन दिन है। पहला जब प्रेमी गली में घूमता के अनादर किया जाएगा। दूसरे दिन जब उसे खून से नहलाने जाएगा। और तीसरे दिन सूली पर चढ़ा दिया जाएगा। और ऐसा ही हुआ।
सूफी लोगों की यही कहानी है। लोग उन्हें समझ नहीं पाते क्योंकि सूफी तो अपने दिल की बात करते हैं। वह अपने मन में भगवान को देखते हैं, परमेश्वर उन्हें अपनी नस व जान से भी करीब होता है, और वह सारा दिन भगवान के दर्शन में व्यस्त रहते हैं। लेकिन धर्म वाले क्या करते हैं, उनके तो समय रखे होते हैं पोजापाठ के लिए, लेकिन सूफी तो हर समय दर्शन करता रहता है। वह दर्शन और दर्शन उनमें होता है।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए, साप्ताहिक भाषा कवियों हज़रत अस्थायी सरमसत ने कहा था, दीदार विच दर्शन में विच्च।
पंडित को अपनी पगड़ी से प्यार है लेकिन सूफी तो भगवान से प्यार करते हैं दोनों का यही अंतर है पंडित पेट को देखता है पूजा नहीं लेकिन सूफी अपने मन में अपनी आत्मा को देखता है और उसका आत्मा को देखते ही एक पूजा होती है बाबा बलखा शाख ने कहा था कि बस इक क ही आवश्यक छात्रों बस करें वे यार।